एक ऊँट अन्य पशु-पक्षियों के रूप का मज़ाक उड़ाता था।
उसने गाय से कहा, “अपने आप को देखो। तुम कितने कुरूप हो! मुझे लगता है कि तुम्हारी हड्डियाँ किसी भी क्षण तुम्हारी त्वचा को चीर देंगी।”
उसने भैंस से कहा, “तुमने अवश्य विधाता को कुपित किया होगा जिसके कारण उन्होंने तुम्हारे सारे शरीर को कोयले जैसे काले रंग से रंग दिया। तुम्हारे वक्र सींग तुम्हें और भी बदसूरत बना देते हैं।”
उसने हाथी से कहा, “तुम सभी जानवरों के बीच एक कार्टून हो। विधाता ने किसी विनोदपूर्ण मनोदशा में तुम्हें बनाया होगा। तुम्हारे शरीर के सभी अंग अनुपात से बाहर हैं। तुम्हारे विशाल शरीर पर एक छोटी सी पूँछ लगी हुई है। तुम्हारी आँखें इतने छोटे हैं और कान इतने बड़े। बेहतर होगा कि मैं तुम्हारी सूंड़, पैर और अन्य अंगों के बारे में कुछ न कहूँ।”
उसने तोते से कहा, “विधाता ने तुम्हारी हुक जैसी लाल चोंच से अपनी हँसोड़पन-भावना दिखाया है।”
इस प्रकार, ऊँट हमेशा सभी प्राणियों का उपहास करता रहता था।
एक बार, ऊँट को एक मुखर और स्पष्टवादी लोमड़ी से मुलाकात हुई। लोमड़ी ने उसे कहा, “हे ऊँट, दूसरों का उपहास करने की आदत त्याग दो। अपने आप को देखने के लिए कुछ समय निकालो। तुम्हें लंबा चेहरा, पत्थर जैसी आँखें, पीले और गंदे दांत, टेढ़ी छड़ियाँ जैसे पैर और पीठ पर एक बदसूरत कूबड़ हैं। तुम कुरूप जानवरों में सबसे कुरूप हो। अन्य जानवरों को एक या दो दोष हैं लेकिन तुम्हारे दोषों की संख्या उन सभी से अधिक है।”
ऊँट ने शर्म से अपना सिर झुका लिया और चुपचाप वहाँ से चला गया।
दूसरों के दोषों के बजाय अपने दोषों को देखो।