एक मादा खरगोश के कई दोस्त थे। वह अक्सर उनसे मिलती थी, उनसे बातें करती थी और अपनी क्षमता के अनुसार उनकी मदद भी करती थी। एक दिन खरगोश स्वयं संकट में फँस गई। शिकारी कुत्तों का झुण्ड उसका पीछा कर रहा था।
बहुत समय के बाद, खरगोश पूरी तरह थक गई थी। बहुत मुश्किल से वह एक झाड़ी के पीछे छिप गई। लेकिन वह डरी थी कि कुत्ते ज़मीन सूँघकर उसे ढूँढ निकालेंगे। यदि उसका कोई दोस्त उसकी सहायता नहीं करता, तो वह अवश्य मर जाती।
तभी उसने अपने मित्र घोड़े को सड़क पर दौड़ते हुए देखा। खरगोश ने घोड़े से विनती की, “प्रिय घोड़े, कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। कृपया मुझे अपनी पीठ पर ले जाओ अन्यथा कुत्ते मुझे मार डालेंगे।”
घोड़े ने जवाब दिया, “प्रिय खरगोश, काश मैं तुम्हारी मदद कर पाता। लेकिन मैं बहुत जल्दी में हूँ। तुम्हारा दोस्त बैल आ रहा है। उससे पूछो और वह अवश्य तुम्हारी मदद करेगा।
खरगोश ने बैल से अनुरोध किया, “प्रिय बैल, कुछ शिकारी कुत्तें मेरे पीछे पड़े हैं। कृपया मुझे अपनी पीठ पर ले जाओ, नहीं तो कुत्ते मुझे मार डालेंगे।”
बैल ने उत्तर दिया, “प्रिय खरगोश, मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ। लेकिन मेरे दोस्त चरागाह में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसलिए मुझे जाना होगा। तुम्हारा दोस्त बकरा आ रहा है। उससे पूछो और वह ज़रूर तुम्हारी सहायता करेगा।”
खरगोश ने बकरे से विनती की, “प्रिय बकरे, कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। कृपया मुझे अपनो पीठ पर ले जाओ अन्यथा कुत्ते मुझे मार डालेंगे।”
बकरे ने कहा, “काश मैं तुम्हारी मदद कर पाता। परन्तु यदि तुम मेरी पीठ पर बैठोगे तो मेरी खुरदरी त्वचा तुम्हें चोट पहुँचाएगी। तुम्हारा दोस्त भेड़ आ रहा है। उससे पूछो, वह अवश्य तुम्हारी सहायता करेगा।”
इस प्रकार, खरगोश के कई पुराने दोस्त वहाँ से गुजरे और खरगोश ने सभी से सहायता माँगी। लेकिन सभी ने कुछ न कुछ बहाना बनाकर चले गए और खरगोश को अपने भाग्य पर छोड़ दिया।
खरगोश ने अपने आप से कहा, “मेरे अच्छे समय में मेरे बहुत सारे दोस्त थे। लेकिन अब, मेरे बुरे समय में मुझे कोई नहीं है। मेरे दोस्त सब स्वार्थी हैं।”
कुछ समय के बाद, शिकारी कुत्ते वहाँ आए और उन्होंने बेचारी मादा खरगोश को मार डाला। कितने दुःख की बात है कि इतने सारे दोस्त होने के बावजूद उसे इस तरह मरना पड़ा।
स्वार्थी मित्र कभी मित्र नहीं होता है। मुसीबत में काम आने वाला मित्र ही सच्चा मित्र होता है।