एक लकड़हारे का कुल्हाड़ा अकस्मात नदी में गिर गया। वह बहुत दुखी हुआ। तब एक देवी वहाँ प्रकट हुई और लकड़हारे से कहा, “चिंता मत करो; मैं तुम्हारा कुल्हाड़ा लेकर आऊँगी।” फिर वह पानी के अंदर गई। थोड़ी देर बाद वह पानी से बाहर आई और उसके हाथ में एक सोने का कुल्हाड़ा था। “क्या यह तुम्हारा कुल्हाड़ा है?” उसने लकड़हारे से पूछा।
"नहीं, यह मेरा कुल्हाड़ा नहीं है।" लकड़हारे ने कहा।
देवी दूसरी बार पानी के अंदर गई। जब वह बाहर आ गई, उसके हाथ में एक चांदी का कुल्हाड़ा था। “क्या यह तुम्हारा कुल्हाड़ा है?” उसने फिर लकड़हारे से पूछा।
“यह मेरा कुल्हाड़ा नहीं है।” लकड़हारे ने फिर कहा।
देवी तीसरी बार पानी के अंदर गई। थोड़ी देर बाद उसने एक लोहे का कुल्हाड़ा लेकर पानी से बाहर आई। “क्या यह तुम्हारा कुल्हाड़ा है?” उसने लकड़हारे से फिर पूछा।
“हाँ, यह मेरा कुल्हाड़ा है।” लकड़हारे ने कहा।
देवी लकड़हारे की ईमानदारी से प्रसन्न थी। उसने लकड़हारे को सोने का कुल्हाड़ा और चाँदी का कुल्हाड़ा पुरस्कार के रूप में दिए।
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है।