ग्रीष्म ऋतु में सब चमकदार और सुन्दर थे। भोजन प्रचुर मात्रा में था। एक टिड्डे ने जी भरकर खाया और खुशी से गाया। उसने चींटियों को भोजन इकट्ठा करते हुए देखा। वह उन पर हँसा।
उसने एक चींटी से, जो उसका मित्र था, कहा, “तुम लोग कितने लालची हो! तुम आनंद के समय में परिश्रम कर रहे हो। अफ़सोस की बात है!”
चींटी ने कहा, “मेरे प्यारे मित्र, हम सर्दी के लिए भोजन का भण्डारण कर रहे हैं।”
ग्रीष्म ऋतु के बाद, शीत ऋतु आई। गर्मी की चमक चली गई। भोजन दुर्लभ होता जा रहा था। टिड्डे को अपने लिए भोजन प्राप्त करना कठिन हो गया। वह भूखा मर रहा था।
इसलिए, एक दिन टिड्डे ने अपने मित्र चींटी का दरवाज़ा खटखटाया। उसने चींटी से कुछ भोजन देने का अनुरोध किया।
चींटी ने कहा, “तुम गर्मी के समय खुशी से गाते रहे। अब सर्दी के समय नाचते रहो। मैं तुम्हारे जैसे आलसी प्राणी को कुछ नहीं दूँगी।”
और उसने टिड्डे के मुँह पर दरवाज़ा बंद कर दिया।
आज का अधिशेष कल की आवश्यकताओं के लिए बचाओ।